देश प्रेम पर निबंध 120 शब्द | Essay on Love for Country स्वदेश प्रेम निबंध देश प्रेम
✹ प्रस्तावना
✹ देश प्रेम की स्वाभाविक
✹ स्वदेश प्रेम का अर्थ
✹ देश प्रेम के प्रति कर्तव्य
✹ भारतीयों का देश प्रेम
✹ उपसाधर
प्रस्तावना – जिस धरती की गोद में हमने जन्म लिया यह परमपिता परमेश्वर द्वारा बनाई गई सर्वाधिक अद्भुत रचना है जहां की धूल मिट्टी खेलकर हम बड़े हुए हैं जहां के अन्य – जल और हवा से हमारे शरीर का पालन-पोषण हुआ है जो निस्वार्थ प्रेम की प्रतीक है स्नेहा की मधुर बयार है उसके प्रति हमारा लगा होना स्वाभाविक ही है एक पशु या पक्षी भी जिस स्थान पर रहता है उसके प्रति उसका प्यार बढ़ता ही जाता है वहां वफादार हो जाता है जबकि हम तो मनुष्य हैं जिस देश में हमने जन्म लिए हैं वहां हमारी मातृभूमि हमारे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं
जिनमें देश – प्रेम नहीं होता और जो अपने क्षुद्र सवा की सिद्धि के लिए देश का बड़ा से बड़ा अहिंत हो जाने देते हैं वे देश प्रेमी नहीं अपितु देशद्रोही कहलाते हैं जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी माता और जन्म भूमि की गरिमा स्वर्ग से भी बढ़कर है
देश प्रेम की स्वभाविकता – प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है वह चाहे मनुष्य हो पक्षी हो या कीड़े मकोड़े इत्यादि हो अपने देश से सभी प्रेम करते हैं अपना देश चाहे बर्फ से ढका हो चाहे पहाड़ों से घिरा हो चाहे गर्म रेगिस्तान से भरा हो चाहे गरीब से ग्रस्त हो या चाहे पत्थरों से उबड़ खाबड़ हो वह सबके लिए फ्री होता है इस संबंध में मुझे रामनरेश त्रिपाठी जी की कुछ प्रेरणादाय पंक्तियां याद आती हैं
विषुवत रेखा का वासी जो जीता है नित हाफ – हाफ कर रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर ध्रुव वासी जो हिम में तम मैं जी लेता है काका कर वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर
देश – प्रेम का अर्थ – देश – प्रेम से तात्पर्य है कि देश में रहने वाले जड़ – चेतन सभी जीव जंतुओं पहाड़ों नदियों से प्रेम अर्थात देश में उपस्थित हर उस चीज से प्रेम जो देश के लिए लाभकारी है देश प्रेम का अर्थ इतना ही नहीं होता कि हर व्यक्ति देश के लिए केवल मर मिटने की भावना हो अपितु अपनी सेवाओं द्वारा देश के आर्थिक सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक ढांचे को मजबूत बनाने की चेस्ट हो देश को विकास के मार्ग पर ले जाएं आज हम स्वतंत्र है लेकिन हमें गरीबी के के बंधन से भी स्वतंत्र होने वाले कदम उठाना चाहिए हमें सबसे बड़ा संघर्ष गरीबी से करना है हमें आत्मनिर्भर होने के लिए अग्रसर होना पड़ेगा यही हमारा सबसे बड़ा राष्ट्र – प्रेम होगा ऐसा प्रत्येक काम जिससे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र का हित हो वही स्वदेश प्रेम की अनुपम ज्योति है खेतों में काम करने वाले किसान सीमा शत्रु में से संघर्ष करने वाले सैनिक कठोर परिश्रम करते वाले मजदूर दुकानदार आदि इन सभी कि एक ही भावना है राष्ट्रीय हित यही देश प्रेम का अर्थ है
देश – प्रेम के प्रति कर्तव्य – देश के प्रति हमारे अंदर अनुपम निस्वार्थ प्रेम होना चाहिए इसके प्रति हमारे कर्तव्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं हमें अपने देश के आर्थिक सामाजिक आदि ढांचे को मजबूत बनाने की ओर अग्रसर होना चाहिए हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्य पालन और त्याग की भावना रखना चाहिए हमें अपने देश की एक इंच भूमि अर्थात एक इंच मातृभूमि के लिए तथा उसके सामान एवं गौरव की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देना चाहिए हमें अपने देश की अखंडता संप्रभुता आदि की जी जान से रक्षा करनी चाहिए
भारतीयों का देश प्रेम – हमारी भारत मां ने ऐसे अनेक नर रत्नों को जन्म दिया है जिन्हेंने असीम त्याग भावना देश के प्रति मर मिटने की भावना से प्रेरित होकर हंसते हंसते मातृभूमि पर अपने प्राणों की बलि दे दी अनेक वीरों ने अपने अद्भुभूत शौर्य एवं पराक्रम से शत्रुओं के दांत खट्टे किए अनेकानेक ऋषि-मुनियों देश की महिमा को मंडली किया हमारे वीर सपूत महाराणा प्रताप घास की रोटियां खाना स्वीकार किया लेकिन पराधीनता नहीं हमारे देश के बहुत से गद्दार भी हुए हैं जैसे जय चंद्र एवं मानसिंह
उपसंहार – अफसोस की बात यह है कि आज हमारे नागरिकों में देश प्रेम की भावना अंत दुर्बल होती जा रही है हमें इस देश प्रेम की भावना को अग्रसर करना चाहिए आज हर व्यक्ति विदेशों से आयातित वस्तुओं का उपयोग उसके प्रति मोह आदि का शिकार हो गया है हमें आत्मनिर्भर बनाने की ओर कदम उठाने होंगे साथी हम हर चीज बना सके
( 1 ) अपने शिक्षा व्यवस्थाको सुधारना होगा
( 2 ) राजनेताओं को योग्यता के अनुसार पर मिलना चाहिए
( 3 ) अपने बच्चों एवं दूसरों के बच्चों में भेदभाव न कर के बराबर शिक्षा देना चाहिए\ इन सभी से हमारा देश तरक्की की राह पकड़ सकता है
✹ प्रस्तावना
✹ देश प्रेम की स्वाभाविक
✹ स्वदेश प्रेम का अर्थ
✹ देश प्रेम के प्रति कर्तव्य
✹ भारतीयों का देश प्रेम
✹ उपसाधर
प्रस्तावना – जिस धरती की गोद में हमने जन्म लिया यह परमपिता परमेश्वर द्वारा बनाई गई सर्वाधिक अद्भुत रचना है जहां की धूल मिट्टी खेलकर हम बड़े हुए हैं जहां के अन्य – जल और हवा से हमारे शरीर का पालन-पोषण हुआ है जो निस्वार्थ प्रेम की प्रतीक है स्नेहा की मधुर बयार है उसके प्रति हमारा लगा होना स्वाभाविक ही है एक पशु या पक्षी भी जिस स्थान पर रहता है उसके प्रति उसका प्यार बढ़ता ही जाता है वहां वफादार हो जाता है जबकि हम तो मनुष्य हैं जिस देश में हमने जन्म लिए हैं वहां हमारी मातृभूमि हमारे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं
जिनमें देश – प्रेम नहीं होता और जो अपने क्षुद्र सवा की सिद्धि के लिए देश का बड़ा से बड़ा अहिंत हो जाने देते हैं वे देश प्रेमी नहीं अपितु देशद्रोही कहलाते हैं जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी माता और जन्म भूमि की गरिमा स्वर्ग से भी बढ़कर है
देश प्रेम की स्वभाविकता – प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है वह चाहे मनुष्य हो पक्षी हो या कीड़े मकोड़े इत्यादि हो अपने देश से सभी प्रेम करते हैं अपना देश चाहे बर्फ से ढका हो चाहे पहाड़ों से घिरा हो चाहे गर्म रेगिस्तान से भरा हो चाहे गरीब से ग्रस्त हो या चाहे पत्थरों से उबड़ खाबड़ हो वह सबके लिए फ्री होता है इस संबंध में मुझे रामनरेश त्रिपाठी जी की कुछ प्रेरणादाय पंक्तियां याद आती हैं
विषुवत रेखा का वासी जो जीता है नित हाफ – हाफ कर रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर ध्रुव वासी जो हिम में तम मैं जी लेता है काका कर वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर
देश – प्रेम का अर्थ – देश – प्रेम से तात्पर्य है कि देश में रहने वाले जड़ – चेतन सभी जीव जंतुओं पहाड़ों नदियों से प्रेम अर्थात देश में उपस्थित हर उस चीज से प्रेम जो देश के लिए लाभकारी है देश प्रेम का अर्थ इतना ही नहीं होता कि हर व्यक्ति देश के लिए केवल मर मिटने की भावना हो अपितु अपनी सेवाओं द्वारा देश के आर्थिक सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक ढांचे को मजबूत बनाने की चेस्ट हो देश को विकास के मार्ग पर ले जाएं आज हम स्वतंत्र है लेकिन हमें गरीबी के के बंधन से भी स्वतंत्र होने वाले कदम उठाना चाहिए हमें सबसे बड़ा संघर्ष गरीबी से करना है हमें आत्मनिर्भर होने के लिए अग्रसर होना पड़ेगा यही हमारा सबसे बड़ा राष्ट्र – प्रेम होगा ऐसा प्रत्येक काम जिससे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र का हित हो वही स्वदेश प्रेम की अनुपम ज्योति है खेतों में काम करने वाले किसान सीमा शत्रु में से संघर्ष करने वाले सैनिक कठोर परिश्रम करते वाले मजदूर दुकानदार आदि इन सभी कि एक ही भावना है राष्ट्रीय हित यही देश प्रेम का अर्थ है
देश – प्रेम के प्रति कर्तव्य – देश के प्रति हमारे अंदर अनुपम निस्वार्थ प्रेम होना चाहिए इसके प्रति हमारे कर्तव्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं हमें अपने देश के आर्थिक सामाजिक आदि ढांचे को मजबूत बनाने की ओर अग्रसर होना चाहिए हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्य पालन और त्याग की भावना रखना चाहिए हमें अपने देश की एक इंच भूमि अर्थात एक इंच मातृभूमि के लिए तथा उसके सामान एवं गौरव की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देना चाहिए हमें अपने देश की अखंडता संप्रभुता आदि की जी जान से रक्षा करनी चाहिए
भारतीयों का देश प्रेम – हमारी भारत मां ने ऐसे अनेक नर रत्नों को जन्म दिया है जिन्हेंने असीम त्याग भावना देश के प्रति मर मिटने की भावना से प्रेरित होकर हंसते हंसते मातृभूमि पर अपने प्राणों की बलि दे दी अनेक वीरों ने अपने अद्भुभूत शौर्य एवं पराक्रम से शत्रुओं के दांत खट्टे किए अनेकानेक ऋषि-मुनियों देश की महिमा को मंडली किया हमारे वीर सपूत महाराणा प्रताप घास की रोटियां खाना स्वीकार किया लेकिन पराधीनता नहीं हमारे देश के बहुत से गद्दार भी हुए हैं जैसे जय चंद्र एवं मानसिंह
उपसंहार – अफसोस की बात यह है कि आज हमारे नागरिकों में देश प्रेम की भावना अंत दुर्बल होती जा रही है हमें इस देश प्रेम की भावना को अग्रसर करना चाहिए आज हर व्यक्ति विदेशों से आयातित वस्तुओं का उपयोग उसके प्रति मोह आदि का शिकार हो गया है हमें आत्मनिर्भर बनाने की ओर कदम उठाने होंगे साथी हम हर चीज बना सके
( 1 ) अपने शिक्षा व्यवस्थाको सुधारना होगा
( 2 ) राजनेताओं को योग्यता के अनुसार पर मिलना चाहिए
( 3 ) अपने बच्चों एवं दूसरों के बच्चों में भेदभाव न कर के बराबर शिक्षा देना चाहिए\ इन सभी से हमारा देश तरक्की की राह पकड़ सकता है